हरिद्वार में हर की पैड़ी पर बहने वाली जलधारा का नया नाम देवधारा रखने की खबर मिलते ही तीर्थ पुरोहितों में आक्रोश पनप रहा है। सभी पीड़ितों ने एक स्वर में पूर्व से चले आ रहे नाम गंगा की आविछिन्न धारा रखने का मांग की है। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा की राष्ट्रीय महामंत्री श्रीकांत वशिष्ठ ने कहा कि गंगा के नाम के साथ खिलवाड़ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके लिए सभी तीर्थ पुरोहित एक मंच पर आकर संघर्ष करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा चंद लोगों के लाभ के लिए गंगा के अस्तित्व को मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे करोड़ों हिंदुओं की आस्था को ठेस लग रही है। गंगा सभा के अध्यक्ष प्रदीप झा ने कहा कि सभी गंगा भक्तों आस्था गंगा में है, इसको बदलना स्वीकार नहीं। पूर्व में भी हम गंगा की आविछिन्न धारा के समर्थक थे, हैं और भविष्य में भी रहेंगे। उत्तराखंड सरकार की ओर से भी यही नाम रखने का आश्वासन मिला है। अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सोसाइटी के संस्थापक डॉ प्रतीक मिश्रपुरी ने कहा कि गंगा के नाम को बदलने का अधिकार हमें किसने दिया। सदियों से गंगा को भागीरथी, मंदाकिनी, जहान्वी, गौतमी सहित अनेक नामों से जाना जाता है। गीता में भगवान कृष्ण ने भी गंगा के नाम का ही उल्लेख किया था। अब नए नाम की क्या जरूरत आन पड़ी है। गंगा सभा के पूर्व अध्यक्ष अशोक त्रिपाठी ने कहा कि हमने गंगा के एस्केप चैनल वाले शासनादेश को को निरस्त करने की मांग की थी। सरकार को केवल इस आदेश को निरस्त करने का आदेश जारी करना चाहिए। अन्य कुछ भी नहीं। अविक्षित रमन ने कहा गंगा कोई भवन या व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है, जिसे सुविधा अनुसार प्रयोग किया जाए। पुरातन काल से ही हर की पैड़ी पर बहने वाली गंगा की जलधारा है और यह गंगा ही रहेगी ।
गंगा के नए नामकरण देवधारा का तीर्थ पुरोहितों ने किया विरोध